Advertisment

Birth Anniversary Balraj Sahni: सदी के महानायक के सबसे चेहते नायक

मुझे मेरी माँ के कारण हिंदी फिल्मों में इंतना इंटरेस्ट रहा है, हालाँकि वह अनपढ़ थी और हर हफ्ते एक नई फिल्म देखना पसंद करती थी और मुझे हर समय उनके साथ फिल्म देखने का सौभाग्य मिलता था! सितारों के बीच उनका पसंदीदा स्टार...

author-image
By Ali Peter John
New Update
yht
Listen to this article
0.75x 1x 1.5x
00:00 / 00:00

मुझे मेरी माँ के कारण हिंदी फिल्मों में इंतना इंटरेस्ट रहा है, हालाँकि वह अनपढ़ थी और हर हफ्ते एक नई फिल्म देखना पसंद करती थी और मुझे हर समय उनके साथ फिल्म देखने का सौभाग्य मिलता था! सितारों के बीच उनका पसंदीदा स्टार, दिलीप कुमार और बलराज साहनी थे. इसका मतलब था कि, जब मैं दस साल का था, तब तक मैंने दो अभिनेताओं की अधिकांश फिल्में देखी थीं और मैं उनके नामों से बहुत अच्छी तरह से परिचित था. किसी कारण से स्कूल के लड़के ने बलराज साहनी को अधिक हैण्डसम पाया, सभी जटिलताएं बड़े होने पर ही शुरू हुईं, लेकिन जब मैं पंद्रह साल का था तब तक मैं ठीक था और यह नहीं जानता था कि कौन बेहतर है और मेरे अपने किशोर मन ने फैसला किया कि बलराज साहनी बेहतर थे और जब तक मैंने अपना निर्णय लिया, तब तक हिंदी फिल्मों को देखने की मेरी प्रेरणा का स्रोत अचानक बंद हो गया जब मेरी मां की मृत्यु हुई और मैं तब केवल पंद्रह साल का था!

मुझे उस समय की राजनीति और राजनेताओं और श्री वी.के.कृष्ण मेनन में बहुत दिलचस्पी थी, जो भारत के पहले रक्षा मंत्री थे और उन्होंने एक बड़े विवाद के बाद इस्तीफा दे दिया था और फिर भी उत्तर-पूर्व बॉम्बे निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने के लिए चुने गए थे. दिलीप कुमार और देव आनंद जैसे सितारे थे जो खुलकर उनके समर्थन में आए थे, लेकिन अगर कोई एक आदमी था जो उनके लिए दिन-रात काम करता था, तो वह बलराज साहनी थे, जो 'शंकु' (कम्युनिस्ट) था, लेकिन व्यक्तिगत आधार पर मेनन का समर्थन करते थे. मुझे याद है कि आर.के.स्टूडियो के पास एक मीटिंग में भाग लेने के लिए जहाँ मेनन और बलराज साहनी सबसे आम लोगों की एक विशाल रैली को संबोधित करने वाले थे. मेनन पहले पहुंचे और अंग्रेजी में एक घंटे से अधिक समय तक बात की (मेनन ने बिना ब्रेक के नौ घंटे संयुक्त राष्ट्र को संबोधित करने का रिकॉर्ड बनाया था), लेकिन अंग्रेजी में उनका भाषण श्रोताओं के सिर के ऊपर से चला गया और सभी लोग अपनी जगह पर बैठे रहे क्योंकि एक घोषणा बार-बार की गई कि बलराज साहनी रास्ते में ही है.

अभिनेता 2 बजे पहुँचे और भीड़ अभी भी इंतजार कर रही थी

और मैं उस भीड़ में से एक था. बलराज साहनी ने हिंदी में एक सरगर्मी भाषण दिया जिसे आम आदमी समझ सकता था और वे चाहते थे कि, वह अपने भाषण कंटिन्यू रखे, लेकिन उन्होंने कहा, "माफ करना दोस्तों कल सुबह 9 बजे मुझे शूटिंग पर जाना है, लेकिन मैं वादा करता हूँ कि मैं आपके बीच बहुत जल्द वापस आऊंगा, सिर्फ एक चीज मांग रहा हूँ आपसे, मेरे दोस्त कृष्णा मेनन को जिता दीजिये", भीड़ ने चिल्लाते हुए कहा, ''जरुर-जरूर, आपने कहा है तो हम कैसे नहीं मान सकते'. कृष्णा मेनन ने पूर्ण बहुमत से चुनाव जीता. लेकिन बलराज साहनी ने मेनन के बाद कभी किसी और के लिए प्रचार नहीं किया. उस रात मैं अंधेरी ईस्ट में चेंबूर में स्थित अपने घर चला गया. बलराज साहनी ने मुझ पर एक जादू कर दिया था जैसे वह उन सभी हजारों लोगों पर कर चुके थे जो उस मीटिंग में बैठे थे.

मैं उनकी सभी नई फिल्मों को देखता रहा और उनकी सभी पुरानी फिल्मों जैसे 'दो बीघा जमीन', 'काबुलीवाला' और 'सीमा' को देखने के लिए ग्रांट रोड, चरनी रोड और मरीन लाइन्स जैसी जगहों की यात्रा की, जिसे सुबह 9 बजे शुरू होने वाले मैटिनी शो कहा जाता था और टिकटों को सामान्य फिल्मों के टिकटों के आधे से भी कम दामों पर बेचा जाता था. मैं अब भी उन शो की शुक्रगुजार हूं, जो हिंदी फिल्मों में मेरी बुनियादी शिक्षा की तरह थे.

हालाँकि, अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद भी, मैं कभी सोच भी नहीं सकता था कि मैं बलराज साहनी से मिलूँगा. लेकिन मेरे जीवन में सभी प्रकार के चमत्कार हुए, सबसे बड़ी बात यह है कि श्री के.ए.अब्बास के साथ मैं सौ रुपये महीने के वेतन पर उनके सहायक के रूप में शामिल हुआ था. तब मुझे नहीं पता था कि अब्बास साहब के साथ काम करना मेरे लिए उस समय के कुछ बेहतरीन लेखकों और कवियों से मिलना होगा, जैसे साहिर लुधियानवी, कैफी आजमी, राजिंदर सिंह बेदी, मजरूह सुल्तानपुरी, अली सरदार जाफरी और बलराज साहनी उनके दोस्त, फिल्मकार चेतन आनंद के साथ ज्यादातर समय बिताना. अब्बास साहब के बारे में एक बड़ी बात यह थी कि उन्होंने मुझे हर उस सेलिब्रिटी से मिलवाया, जो शोमैन राज कपूर सहित उनके घर या उनके कार्यालय में आते थे. यह हिंदी फिल्मों के बारे में मेरी सीख का एक और चैप्टर था.

बलराज साहनी एक ऐसे सितारे थे जिनके बारे में कोई अफवाह नहीं थी और वे सभी वर्गों के लोगों के साथ घुलमिल सकते थे, उच्च वर्गों से लेकर नई मुंबई का निर्माण करने वाले कर्मचारियों तक. उन्होंने आम आदमी के साथ भी दोस्ती की और सभी को अपने जीवन जीने के संघर्ष के बारे में भी बताया था. उनकी एक फिल्म की यूनिट जो महाराष्ट्र के अंदरूनी हिस्सों में शूटिंग कर रही थी, जब स्थानीय लोगों और यूनिट के सदस्यों के बीच एक शो डाउन था. बलराज साहनी ने दयनीय स्थिति को संभाल लिया और स्थानीय लोगों से सरल हिंदी में बात कीऔर उन्हें समझ में आया और कुछ ही समय के भीतर शांति थी और वही स्थानीय लोग जो यूनिट के कुछ सदस्यों को पीटने का इंतजार कर रहे थे, यूनिट को किसी भी तरह की मदद देने के लिए तैयार हो गए थे. हालांकि इस तरह की स्थिति का सामना बलराज साहनी को अपने करियर के दौरान कई बार करना पड़ा था.

मैंने सुना था कि स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेने के लिए उन्हें कैसे गिरफ्तार कर लिया गया था. लेकिन इस कहानी के बारे मैं खुद उनके मुह से सुनकर मुझे बहुत अच्छा लगा था. उन्हें आर्थर रोड जेल में सलाखों के पीछे डाल दिया गया. के.आसिफ की 'हलचल' की शूटिंग जारी थी और आसिफ ने सरकार से बलराज साहनी को पूरे दिन शूटिंग के लिए आने और शाम को वापस जेल जाने की अपील की. उसे अपने हाथों से हथकड़ी लगाकर पुलिस वैन से लेकर आए और शूटिंग के बाद उसे फिर से हथकड़ी पहनाकर वापस आर्थर रोड जेल ले जाया गया. लेकिन वह किसी भी स्थिति में वह अपने प्रदर्शन को प्रभावित नहीं होने देते थे.

बलराज साहनी अभिनय की प्राकृतिक पाठशाला में एक उत्साही विश्वासी थे. यह वह मेथड था जिसने उसे अपना आधे से अधिक वजन कम करने के लिए ले लिया और उसे कलकत्ता में रहने दिया, जहां उन्होंने सीखा कि कैसे रिक्शा को हाथ से चलाना और धूप में नंगे पैर चलना पड़ता था, भारतीय फिल्म इतिहास की सबसे यादगार फिल्मों में से एक, 'दो बीघा जमीन' में अपनी भूमिका के लिए तैयार होने के लिए उन्होंने यह सब किया था. वह वास्तविक जीवन के पठानों के साथ रहते थे, यह देखने के लिए कि वे कैसे 'काबुलीवाला' में अपनी भूमिका के लिए खुद को तैयार कर सकते थे. यह वह तरीका था जो उन्होंने अपनी सभी भूमिकाओं के लिए खुद को तैयार करने के लिए अपनाया था.

उनके लिए बुरा समय तब शुरू हुआ जब उन्होंने अपने जीवन का सबसे महत्वाकांक्षी फैसला जुहू में अपना बंगला बनाने के लिए लिया. उन्होंने अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए पर्याप्त धन कमाया था. बंगले को उन्होंने सन-एन-सैंड होटल के सामने 'इकराम' नाम दिया था. 'इकराम' में प्रवेश करते ही पूरे परिवार पर मुसीबत पडनी शुरू हो गई. उनकी पहली पत्नी जो एक अभिनेत्री थीं उनका अचानक निधन हो गया. एक युवा नौकर की भी अचानक मृत्यु हो गई. और तब सबसे बड़ा झटका लगा जब उनकी जवान बेटी शबनम ने अचानक आत्महत्या कर ली और बलराज साहनी एक टूटे हुए व्यक्ति के रूप में अकेले पड़ गए थे.

यह इस तरह का जीवन था कि बलराज साहनी ने अपनी आखिरी फिल्म 'गर्म हवा' की शूटिंग शुरू कर दी थी, जो एक बूढ़े मुसलमान की कहानी थी जो भारत के लिए अपने प्यार और परिस्थितियों के बीच फस जाता है जो उसे अपने परिवार की सलाह का पालन करने और पाकिस्तान जाने के लिए मजबूर करते है. फिल्म की भावनाओं ने बलराज साहनी के जीवन पर भारी असर डाला. और उनके दुख को जोड़ते हुए, उन्हें एक दृश्य के लिए शूट करना पड़ा जिसमें फिल्म में भी उनकी बेटी ने आत्महत्या कर ली थी. निर्देशक, एम.एस.सत्यू यह जानना चाहते थे कि बलराज साहनी कितने संवेदनशील हैं, यह जानने के लिए वह सीन को कट करना भी चाहते थे, लेकिन अनुभवी अभिनेता शूटिंग के लिए दृढ़ थे और उन्होंने इस दृश्य को पूरा कर लिया और शूटिंग पूरी होने पर वह पूरी तरह से बिखर गए थे. अगली सुबह, हर जगह टेलीफोन रिंग हो रहा था. क्योंकि बलराज साहनी की मृत्यु हो गई थी, उनकी नींद में बड़े पैमाने पर दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हुई थी. वह तब केवल 59 वर्ष के ही थे.

वह एक कम्युनिस्ट थे और जीवन के सभी क्षेत्रों से आने वाले लोगों की भारी भीड़ से पहले किसी भी धार्मिक संस्कार के बिना उनका अंतिम संस्कार किया गया था. और एक पेड़ के नीचे अमिताभ बच्चन नामक एक संघर्षशील अभिनेता खड़ा था, जिसने तब एक लाइन से 11 फ्लॉप फिल्मे दी थी और वहा मौजूद लोगों ने भारत के एक रत्न के निधन पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय अमिताभ को अपमानित करना ज्यादा जरुरी समझा. बलराज साहनी ने सबसे पहले के.ए.अब्बास को बताया कि उन्होंने सही विकल्प बनाया था, जब उन्होंने अमिताभ बच्चन को 'सात हिंदुस्तानी' के लिए अंतिम समय पर चुना था. उन्होंने अब्बास से कहा था कि युवक का भविष्य बहुत अच्छा होगा और अमिताभ अभी भी बलराज साहनी के सबसे बड़े प्रशंसक है.

उनका घर, 'इकराम' अब ढह गया है और उन खंडहरों के बीच में केवल उनकी बेटी, सनोबर रहती है और घर पर मुकदमा चल रहा है और उसके भाई परीक्षित साहनी और उनके बीच, परीक्षित और उनके इकलौते बेटे को उस खंडहर में प्रवेश करने का भी कोई अधिकार नहीं है. परीक्षित ने अपने पिता की जीवनी 'द नॉनकॉनफॉर्मिस्ट' लिखी है.

ऐसे महानायक के लिए ना कोई म्यूजियम ना कोई पुतला और ना कोई यादगार की जरुरत है, क्योंकि वो लोगों के दिल में रहते है.

Read More:

Hania Aamir, Mahira Khan समेत कई पाकिस्तानी स्टार्स के इंस्टाग्राम अकाउंट भारत में हुए ब्लॉक, फवाद खान का नाम लिस्ट से बाहर

FIR Against Badshah: बादशाह के खिलाफ पुलिस ने दर्ज की FIR, रैपर पर लगा धार्मिक भावनाएं आहत करने का आरोप

WAVES Summit 2025: Shah Rukh Khan से लेकर Alia Bhatt तक बॉलीवुड के तमाम स्टार्स ने समिट में दिखाई अपनी मौजूदगी

Salman Khan New Film: Salman Khan बनेंगे आर्मी ऑफिसर, गलवान घाटी विवाद से जुड़ी होगी फिल्म

 

Tags : Balraj Sahni | balraj sahni acting | Balraj Sahni book | Balraj Sahni DEATH | balraj sahni ki filmen | balraj sahni movies | balraj sahni movies list | balraj sahni old movie | balraj sahni songs | Birthday Special Balraj Sahni | happy birthday Balraj Sahni 

#happy birthday Balraj Sahni #Birthday Special Balraj Sahni #balraj sahni songs #balraj sahni old movie #balraj sahni movies list #balraj sahni movies #balraj sahni ki filmen #Balraj Sahni DEATH #Balraj Sahni book #balraj sahni acting #Balraj Sahni
Advertisment
Latest Stories